डर एक सीमा तक ठीक है जहां तक वो हमे सही रस्ते पर टिकाये रखता है। और रिस्क तब तक ठीक है जब तक वो हमे अपने वजूद से जोड़े रखता है।

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जरूरी नही की मात्र पैसे से ही खुद का काम शुरू किया जा सकता है। अपने छोटे से करियर मै मैने बहुत से लोगो को देखा है जो आर्थिक तंगी होने के बहुजूद भी खुद की कंपनी शुरू कर कामयाब हो जाते है।

क्या कारण है कि हर सुविधा होने के बाहुजूद भी अधिकतर लोग केवल जॉब तक ही सीमित रह जाते है। सबसे बड़ा कारण जो मुझे लगता है वो है रिस्क न ले पाना। एक बहुत ही फेमस विज्ञापन है जिसमे कहा गया है : “डर के आगे जीत है ” रिस्क से ही नाम बनते है ” ये बाते उतनी ही सटीक बैठती है जितनी सुनने में लगती है।

डर एक ऐसा शब्द है जो हर काम को होने से पहले ही खत्म  है। गलती हमारी नही होती बल्कि बचपन से ही हमे सिखाया जाता है कि डर क्या होता है। बचपन में गिरने का डर , चोट लगने का डर , अँधेरे से डर , भूत से डर , परीक्षा में असफल होने का डर , कॉम्पिटिशन में पीछे रह जाने का डर , अच्छी जॉब न मिल पाने का डर , परिवार से दूर हो जाने का डर , गर्ल फ्रेंड के इंकार का डर , टॉप न कर पाने का डर , घर में पापा का डर , स्कूल में टीचर का डर , खेल में गिर जाने का डर। हम हर पल डरते है और यही हमारी आदत बन गयी है। जॉब के छूट जाने का डर , अपने काम में असफल हो जाने का डर। कभी कभी तो लगता है कि डर हममे नहीं , हम ही डर  में रहते है।

मैने अक्सर लोगो को कहते हुए सुना है कि वो डरते नही है बस कुछ मजबूरियाँ है जिनकी वजह से वो जिंदगी में सफल नही हो पाये। जिंदगी में बहुत मजबूरियाँ होती है जो हमें हर पल आगे बढ़ने से रोकती है। मज़बूरी होना एक अलग बात है परन्तु कुछ काम उनमे से ऐसे भी होते है जो डर के कारण नही किये जा सके। कुछ लोग बिना सोचे समझे ही रिस्क ले बैठते है और बाद में पछतावा करते है। डर एक सीमा तक ठीक है जहां तक वो हमे सही रस्ते पर टिकाये रखता है। और रिस्क तब तक ठीक है जब तक वो हमे अपने वजूद से जोड़े रखता है।

जब एक चिड़िया पहली बार उड़ती है तो वो आसमान में बहुत दूर तक नही जाती क्योंकि  उसे पता है उसकी हद कहा तक है। दूसरी बारी में वो और अधिक दूरी तक जाती है और एक दिन वो आसमान में बिना किसी डर और हद के उड़ती है। यहाँ दो बाते है जो हम गौर कर सकते है। पहली ये कि अगर चिड़िया उड़ने की कोशिस ही नही करती तो वो कभी अपनी हदो को पार ही नही कर पाती और दूसरी ये कि अगर वो पहली बार में ही अपनी हद को पार कर जाती तो शायद कभी वापिस लौट कर अपने घोंसले में न आ पाती।

डर और रिस्क दो बड़े ही अहम हिस्से है जिंदगी के। इनसे ही बहुत कुछ पाया जा सकता है और बहुत कुछ खोया भी जा सकता है। हम सबने डर की वजह से बहुत कुछ खोया है और रिस्क की वजह से बहुत कुछ पाया भी है। मेरे एक परिचित व्यक्ति है वो अक्सर मुझे अपनी सबसे बड़ी असफलता के बारे में बताया करते है। उत्तर प्रदेश  के रहने वाले है। आज कल उनका काफी बड़ा फ्रेंचाइजी मार्केटिंग का काम है। कुल मिला कर 10-12 कम्पनियो का काम करते है। फ्रेंचाइजी मार्केटिंग के हिसाब से एक बहुत बड़ी पार्टी माने जाते है। जब वो फार्मा मार्किट में आये थे तो उन्होंने अपनी शुरुआत आयुर्वेदिक कंपनी से की। उन्होंने खुद की आयुर्वेदिक कंपनी शुरू की और काफी बड़े स्तर पर काम शुरू किया। मार्किट का ज्ञान था नही। जो व्यक्ति मिले सबने बड़े बड़े सपने दिखाए। लाखो का माल मार्किट में उतार दिया। ज्ञान न होने के कारण मार्किट से वापिस पैसा आया नही और कुछ ही समय में वो 50 से 60 लाख के कर्ज में फँस गए। उस कर्ज से निकलने में उनको करीबन 10 साल लग गए। फिर उन्होंने दूसरी कम्पनियो का फ्रेंचाइजी मार्केटिंग का काम शुरू किया। आज जाकर इस मुकाम पर पहुंचे है कि अपनी खुद की फ्रेंचाइजी बेस कंपनी शुरू करने जा रहे है।

उनकी जो पहली असफलता थी उसका कारण था अपनी हद को पार कर जाना। अगर शुरुआत से ही पेमेंट और कलेक्शन का अनुमान लगा कर चलते तो आज खुद की कंपनी की ही कई डिविशंस शुरु कर चूके होते।

उम्मीद है आपको मेरा ये लेख पसंद आया होगा।

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