ब्रांड्स का दूसरा नाम विश्वास होता है . ब्रांड बनते नही है बनाये जाते है

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मित्र  की  परिभाषा हर पल परिवर्तित होती रहती है। बचपन में उन्हें मित्र माना जाता था जिनके साथ हम खेलते थे। युवास्था में उन्हें मित्र माना जाता था जिनके साथ हम समय वयतीत करते थे। अक्सर यही सोचते थे कि अपने मित्रो को कभी भूलेंगे नही किन्तु समय का बदलाव कहे या मज़बूरी आज के व्यस्त दौर में किसी भी मित्र से बात करने का समय भी निकल नही पाता।

इस जगह आकर मित्रता केवल नाम की रह गयी है। बचपन की दोस्ती में सचाई थी ईमानदारी थी। किन्तु आज की दोस्ती केवल और केवल स्वार्थ पर केंद्रित रह गयी है। रिस्तो का भी वयवसायिक करन हो गया है। अच्छे रिस्ते उनसे ही होते है जो हमे अच्छा बिज़नेस देते है। क्या मित्रता और मार्किट रिलेशनशिप एक साथ चल सकते है।

मार्किट में रिश्ते होते बिज़नेस पर ही निर्भर किन्तु आपकी जरूरत के वक़्त केवल वही रिलेशनशिप काम आते है जो बिना किसी स्वार्थ के होते है। मेरे मार्किट में अच्छे रिलेशनशिप है। जिनके साथ में डील करता हूँ अधिकतर उनके साथ सम्बन्ध अच्छे होते जाते है किन्तु ये संबंध एक विश्वास और भरोसे पर टिके होते है।  जैसे ही हम कंपनी को ज्यादा फायदा या अपनी स्वार्थ पूर्ति के उदेश्ये से काम करना शुरू कर देते है। रिश्ते बिगड़ने लगते है।

परिवारिक रिलेशनशिप हो या बिज़नेस , दोनों की बुनियाद विश्वास ही होता है। मित्रता बिज़नेस से जुड़ी हो सकती है किन्तु उसमे निरंतरता और नवीनता विस्वास और भरोसे पर ही निर्भर है। आपके क्लाइंट इस विश्वास से जुड़े है कि आप कभी भी उनको नुकसान नही होने देंगे। बिज़नेस का प्रथम उद्धेश्य लाभ अर्जित करना और जीविका का निर्वा करना होता है। उनका रिलेशनशिप आपसे अपने लाभ के उद्धेस्य से जुड़ा है और आपका रिलेशनशिप उनके साथ , आपके लाभ से जुड़ा है।

ये रिलेशनशिप पूरी तरह GIVE AND TAKE वाली मानसिकता पर आधारित है। किन्तु इसके सफल होने या न होने में भी वही कारक काम करते है जो आपके निजी संबंधो में काम करते है। अगर आप इस रिलेशनशिप को आदर  नही देते या केवल इस रिलेशनशिप को फायदे के लिए ही निभाते है तो ये न आपके लिए अच्छा है , न आपकी कंपनी के लिए।

आप क्या सोचते है कि ब्रांड्स (Brands) कैसे बनते है। ब्रांड्स का दूसरा नाम विश्वास होता है। और विश्वास एक लंबी प्रकिर्या होती है। कुछ छोटे छोटे कदम ही  मंजिल तक पहुंचते है। जरुरी नही कि केवल बड़ा मार्केटिंग बजट या एक बहुत बड़ी सेल्स टीम ही आपको ब्रांड बनाती है। आपकी  कस्टमर के प्रति ईमानदारी, निष्ठा और विश्वास भी आपको ब्रांड्स की श्रेणी में ला  सकता है। ब्रांड के साथ एक रिश्ता सा महसूस करते है ग्राहक। उन्हें लगता है कि चाहे जो भी हो , ब्रांड से उनको कभी भी कोई हानि  नही हो सकता।

यही विश्वास आपकी सेल्स में परिवर्तित हो जाता है। आपको एक ऐसा कस्टमर मिल जाता है जो आपके प्रति निष्ठावान (loyal) है। जो खुद तो आपको सेल देगा ही और साथ ही दुसरो को भी आपके प्रति जागरूक करेगा। आपके ब्रांड को मुक्त  में ही बढ़ावा मिल जायेगा। कुछ चीज़े बहुत छोटी होती है पर उनका असर बहुत ज्यादा होता है।  हमारे पास बाबा  राम देव का उदहारण है। पंतजलि को अपने ब्रांड्स  स्थापित करने में कोई बड़ा मार्केटिंग बजट खर्च नही किया लेकिन उन्होंने केवल जागरूकता उत्पन की और ब्रांड खुद स्थापित हो गया।  लोगो को विश्वास हो गया कि पतंजलि के प्रोडक्ट्स पूर्ण रूप से नेचुरल और आयुर्वेदिक है। जिससे उनको कोई हानि नही हो सकती। वो जागरूकता ही आज उनके लिए सेल्स में परिवर्तित हो रही है।

और भी बहुत सारे ब्रांड्स है जिन्होंने बहुत कम बजट से अपने आप को स्थापित किया है। व्हाट अप्प (what ‘s app ) ने भी केवल अपनी यूनिक नेस, समान्यता और विश्वसनीयता के कारण ही बिना मार्केटिंग बजट के कामयाब किया था। व्हाट एप्प जैसे न जाने कितने एप्प आये , मोटे तौर पर पैसा खर्च किया गया मार्केटिंग पर , पर कभी ब्रांड न बन पाये।

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