आज मै आपको अपनी पहली जॉब के बारे में बताना चाहता हूँ। ज्यादातर मेरी पहली जॉब के बारे में जानना पसंद नही करेंगे किन्तु मै उस असफलता के बाद के सफर के बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि अगर पहली जॉब में सफल हो जाता तो मै कहा होता।
अपनी फार्मेसी में डिग्री पूरी करने के बाद कुछ महीने खाली रहने के बाद एक मल्टी नेशनल कंपनी में एक MR (मेडिकल रेप्रेसेंटिवे ) की जॉब से अपने करियर की शुरूआत की। ज्वाइन होते ही सीधा फील्ड में आ गया। पहले 3 दिन एरिया मैनेजर के साथ सयुंक्त वर्किंग थी। हरियाणा में अगर आप सेल्स में काम कर चुके है तो आपको पता होगा यहाँ काम करने के लिए आपके पास सीमित ही समय होता है। आप 3 बजे तक ही वर्क कर सकते है। 11 -12 बजे के आस पास एरिया मैनेजर आते थे और 3 बजे उन्हें निकलना ही पड़ता था। 2 दिन पानीपत हेड क्वाटर में और 1 दिन सोनीपत में हमने साथ साथ वर्किंग की। पहले 3 दिन तो मैनेजर साथ थे इस कारण मुश्किल पेश नही आई काम करने में। बैग , विसुअल , प्रमोशनल इनपुट इत्यादि सब मिल चुके थे। इसी कारण मैने वर्किंग शुरू कर दी थी।
अब 3 दिन में कितना सीख सकता था। ट्रेनिंग वग्रह अभी होनी नही थी। बहुत से दोस्त पहले से ही सेल्स में थे और उनमे से भी कही पानीपत में ही थे। कभी वर्किंग पर चला गया कभी नही गया। ऐसा ही रूटीन सा हो गया। दिन में 12 कॉल्स कंपनी के लिए जरूरी थी। लेकिन सबको पता है दिन में ज्यादा से ज्यादा कितनी कॉल्स हो सकती है। डॉक्टर्स के पास लाइन लगी होती थी। कुछ डॉक्टर्स सुन लेते थे तो कुछ बस खाना पूर्ति कर देते थे। धीरे धीरे समझ में आया कि ऐसे तो एक प्रोडक्ट भी नही लिखवा सकता।
डॉक्टर्स हम जैसे मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव को भूल बड़ी जल्दी जाते है। एक दिन कॉल करता , डॉक्टर कहता कल सैंपल दे जाना। अगले दिन सैंपल देने जाओ तो ऐसे बर्ताव करेगा कि पहली बार मिल रहे है। डॉक्टर ने हाँ कह दी तो केमिस्ट ऐसे कहेगा कि ये डॉक्टर तो पागल है सबको माल लिखने के लिए बोल देता है लिखता है नही। तू भी रख जा , जब बिकेगा पैसे ले जाना। कही बार तो रखने से ही मना कर देता है। शुरूआत में सबके साथ ही ऐसा होता है पता नही पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ। कंपनी बहुत बड़ी थी पर न जाने क्या अंदरूनी मुश्किल चल रही थी कि महीने में सैलरी ही नही आई। फिर मैने ओर कम कर दी वर्किंग।
करियर की शुरूआत थी और मार्किट के बारे में कुछ आता पता नही था। 45 दिन के बाद तो मैने वर्किंग पर जाना कर दिया। न एरिया मैनेजर कोई इंटरेस्ट ले रहे और जोनल मैनेजर कम्पनी छोड़ कर ही चले गए थे। न कोई गाइड करने वाला था न कोई कुछ बताने वाला की कैसे काम किया जाये। दोस्तों को देखता तो वो सब कितना आसानी से सब कुछ कर रहे थे। कोई कहता मेरा 2 महीने का इंसेंटिव रुका हुआ है कोई कहता क्लोजिंग करके देखता हूँ कितनी सेल हुई है। उनके लिए जो आसान था मुझे पहाड़ सा लग रहा था। जैसे तैसे करके मैने 3 महीने जॉब में निकाले और जब कोई सैलरी नही आई घर बैठ गया।
जितना प्रमोशनल इनपुट था कुछ डॉक्टर्स को गिफ्ट कर दिया कुछ घर वालो में बाँट दिया। फिर एक दिन उनके नए आये जोनल मैनेजर का फ़ोन आया। कहा मुझे इस डिस्ट्रीब्यूटर पर कल मिलना और अपनी सैलरी के चेक ले जाना। पुरे 3 महीने का रिकॉर्ड जैसेकि DCR , मंथली टूर , एक्सपेंस स्टेटमेंट वगैरा ले आना। जैसे तैसे कर डिटेल तैयार की। पहुंच गया चेक लेने। उसने डिटेल मांगी मैने दे दी। उसने ऑब्जेक्शन किया और कहा कि तूने प्रमोशनल आइटम्स में हेरा फेरी की है। की थी तो मैने। मैने कह दिया कि मेरे पास नही है। उसने चेक नही दिए। मै भी घर आ गया।
आज जब भी उन कुछ महीनो को देखता हूँ तो बहुत ही बड़ा अनुभव मिलता है उसको याद करने से। वो हार जरूर थी मगर उसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। दोस्तों में काफी मद्त की। पर एक बात तो पकी थी कि यहाँ आपको सबकुछ खुद ही सीखना पड़ता है। मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव के तौर पर बिताये उन 3 महीनो ने मुझे जमीनी हकीकत से मिलवाया जिससे मुझे अपनी फ्रैंचाइज़ी के काम और मेहनत को समझने में सहायता मिली। मुझे सच्चे तौर पर लगता है कि अगर वो 3 महीने न होते तो मुझे कभी भी यह अहसास नही होता की सफलता केवल मेहनत से ही मिल सकती है। कितना ज्यादा कॉम्पिटिशन है मार्किट में यह पता चला। जब भी कंपनिया अपनी फ्रेंचाइजी को सेल बढ़ाने या सेल न बढ़ा पाने पर बदलने को कहती है तो उनके द्वारा की गयी मेहनत याद आ जाती है।
अगर कम्पनियो को सेल बढ़ानी है तो नए प्रोडक्ट्स या नयी सविधाये दे न की किसी की मेहनत को ऐसे बर्बाद करे। अगर कंपनी इतनी ही महत्वाकांक्षी है तो ओर डिवीज़न लांच करे लेकिन किसी फ्रेंचाइजी को सेल के लिए तंग करना गलत होता है। जो फ्रेंचाइजी हर महीने अच्छा आर्डर अगर दे रही है तो एक फ्रेंचाइजी सही मानी जाती है। जो साल में कभी कभी जागते है उनके बारे में मै कुछ नही कह सकता।
धन्यवाद।
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