बिज़नेस में कर्ज से कैसे बचा जाये

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मै अपने लेखो में अपना पूरा अनुभव झोंक देना चाहता हूँ। कभी इसमे कामयाब हो जाता हूँ और कभी यह एक व्यर्थ सा लेख बन कर रह जाता है। अपने पुरे करियर में मैने एक बात गौर की है और वो है कम्पनियो की बैंक क्रेडिट लिमिट हर साल बढ़ती जाती है। जब मैने अपना करियर शुरू किया था और आज तक जितनी कम्पनियो को देखा है सबने अपनी बैंक लिमिट्स को बढ़ाया ही है कभी कम नही किया है। सेल भी बड़ी है , प्रॉफिट में भी बढ़ोतरी हुई पर कभी उनका कर्ज कम नही हुआ। इसका क्या कारण है कि हम एक फाइनेंसियल असंतुलन की ओर बढ़ते चले जाते है। एक दौर कम्पनियो पर ऐसा भी आता है जब उसके लिए अपने ख़र्चे निकालना मुश्किल होने लगता है।

शुरूआत के पहले या दूसरे साल में छोटी कंपनिया पर ज्यादा उधार नही होता। उसके बाद सिलसिला शुरू होता है बैंक के पास जाने का। सफर शुरू क्या होता है , अगले तीन या चार सालो में उनकी क्रेडिट लिमिट आसमान छूने लगती है। यहाँ से अंतर पैदा होता है उन कम्पनियो में जो मार्किट में अपनी मजबूत पकड़ बना लेती है और उन कम्पनियो में जो गुमनामी के अंधेरो में बस नाम की ही कंपनी रह जाती है। क्रेडिट लिमिट बढ़ना या कम्पनियो पर देन दारी बढ़ना एक आम बात होती है। मुश्किलें शुरू होती है जब आपकी सेल और प्रॉफिट में मामूली सा अंतर आये और कर्ज इतना बढ़ जाये की प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा ब्याज में ही चला जाये।

किसी भी बिज़नेस की सुरुआत के वक़्त लोग उतना ही पैसा लगाते है जितना उनके पास होता है या जितना वो जुटा सकते है। फिर बिज़नेस बढ़ना शुरू होता है।  बिज़नेस बढ़ाने के लिए ओर  पैसे की जरूरत पड़ती है। कंपनी बैंक के पास जाती है। बैंक कुछ पैसा दे देता है। कंपनी या ओनर के पास अच्छा खासा रेवेन्यू (धन ) भी इकटा हो जाता है। प्रॉपर्टी भी हो जाती है , बैंक बैलेंस भी हो जाता है। यहाँ आकर आप किस दिशा में कंपनी को ले जाना चाहते है ये आप पर निर्भर करता है। नए नए अमीर बने लोग अपने खर्चे और ऐशो आराम इतने बड़ा लेते है कि कंपनी का ज्यादातर प्रॉफिट अपने निजी कार्यो में लगाना शुरू कर देते है। कंपनी को अगले मुकाम तक बढ़ाने के लिए ओर फंड की जरूरत होती है। कंपनी का प्रॉफिट तो निजी कार्यो में जाने लगता है। और पैसा बैंक से ले लिया जाता है।

सिलसिला चलता जाता है। एक दिन कर्ज इतना हो जाता है कि प्रॉफिट का बड़ा हिस्सा तो ब्याज पर खर्च होने लगता है और कंपनी की ग्रोथ में उसका कर्ज ही मुश्किलें पैदा कर देता है।

इसका एक दूसरा पहलु भी होता है। ग्रोथ के लिए हर कंपनी को फंड की जरूरत पड़ती है। शुरुआत में कम्पनियो के पास इतना फंड नही होता। बैंको से लोन लिया जाता है। तो सीधी सी बात होती है , अगर पैसा सही जगह लगता है तो ग्रोथ भी मिलेगी। ग्रोथ मिलेगी तो मतलब प्रॉफिट बढ़ेगा। कंपनी के पास और पैसा आएगा। यह प्रॉफिट अगर सही तरह और सही जगह उपयोग किया जाये तो दोबारा बैंको के पास जाने की जरूरत नही पड़ेगी और कंपनी का कर्ज उसकी कैपिटल के मुकाबले बहुत कम होता है।

फंडा ये है कि कंपनी हमेशा प्रॉफिट में ही होती है।  कर्ज कम्पनियो पर या तो इस कारण  होता है कि वो  बिज़नेस बढ़ा रहे है। या इस कारण की उन्होंने अपने खर्चे  अपनी आय से ज्यादा कर लेते है। छोटी कंपनिया मार भी इसी वजह से खाती है। जब कंपनी से पैसा बाहर के कार्यो में निकलना शुरू हो जाता है तो वही पर ग्रोथ रुक जाती है। कंपनी का मालिक अगर अपनी सैलरी निकले और बाकि प्रॉफिट कंपनी में ही रहने दे तो निश्चित तौर पर कंपनी बहुत उंचाईयों पर चली जाएगी। मेरा अनुभव तो मुझे यही सिखाता है , आपका अनुभव क्या कहता है कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करे।

धन्यवाद।
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