हमारा स्वाथ्य विभाग बड़ी बहादुरी और निगरानी से काम करता है। किन्तु बहुत सारी खामियाँ है जिनको जल्द से जल्द दूर करने की आवश्यकता है। मैं जिस ख़ामी के बारे में बताने जा रहा हूँ उसको एक उदहारण के तौर पर पेश कर रहा हूँ
एक दवा का निर्माण होता होता है – दिसम्बर 2015 में। जनवरी 2016 में वह बाजार में उपलब्द हो जाएगी। उसी महीने में वह पुरे देश में वितरित हो जाएगी। जिन कम्पनियो का नेटवर्क अच्छा होता है मार्च या अप्रैल के आते आते पूरा बैच बिक चूका होता है।
इस दौरान अगर कोई सैंपल उस बैच का कही से भी न लिया जा सके तो २ महीने में बिना किसी टेस्टिंग के दवा को मरीज ले भी चूका होता है। कुछ कंपनिया तो सब स्टैण्डर्ड दवा बना कर बिना बिल के 1 महीने में ही बेच चुकी होती है। समश्या बड़ी गंभीर है।
बहुराष्ट्रीय कंपनिया भी अपने बैच फ़ैल हुई दवा को भी कम मूल्य पर बेच कर अपनी लागत पूरी कर लेती है। शार्ट एक्सपायरी दवाये भी खुले आम बाजार में रेपैक करके या ऐसे ही बेचने का खेल जारी है। सभी दवाओ को टेस्ट नही किया जा सकता और न ही यह संभव हो सकता है क्योकि बाजार में लाखो की संख्या में ब्रांड बनकर आते है किन्तु कोई न कोई हल तो निकालना आवश्यक है।
दूसरी तरफ अगर हम ले की किसी दवा का सैंपल टेस्टिंग के लिए ड्रग डिपार्टमेंट ले भी लेता है तो उस प्रकिर्या को पूरा होने में ही 2 महीने का समय गुजर जाता है। सैंपल लेने के 7 से 10 दिन का समय तो रिपोर्ट के आने में लगेगा , फिर केमिस्ट से परचेस बिल की मांग की जाएगी। उसके बाद स्टॉकिस्ट से और बाद में मैन्युफैक्चरर को नोटिस भेजा जायेगा।
इस सारी प्रकिर्या में २ महीने का वक़्त निकल जायेगा और दवा बाजार में बिक चुकी होगी। उसके बाद उसे रिकॉल या वापिस मंगाने से भी दवा वापिस मार्किट में से वापिस नही आ सकती। दवा की टेस्टिंग से तब कोई लाभ नही होता। दवा मरीजों द्वारा ली जा चुकी होती है।
हमारे दवा विभाग को किसी न किसी ऐसी पॉलिसी पर विचार करना चाहिए जो दवा के बाजार में आने से पहले ही उसकी गुणवत्ता को प्रमाणित कर सके। अगर ऐसा हो सके तो नकली और ख़राब गुणवत्ता वाली दवा के खेल को रोका जा सकता है।
हमारा एक छोटा सा प्रयास किसी अपने की जान बचा सकता है। क्या पता आप जो दवा बाजार से खरीद कर लाये हो वह कम गुणवत्ता की हो या नकली हो। आप इस बारे में अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में लिख सकते है या मेल कर सकते है pharmafranchiseehelp@gmail.com पर।