सबसे बड़ा गुण जो उनमे देखने को मिलता है वो है टीम वर्क।
ज्यादातर सफल लोग अपने एम्प्लोये को अपनी टीम की तरह देखते है। उन्हें पता होता है कि वो अपनी टीम के बिना कुछ नही कर सकते है। छोटी से लेकर बड़ी सफलता तक , हर सफलता का क्रेडिट वो अपनी टीम को देते है। अधिकतर लोग सोचते है कि एम्प्लोए पैसे के लिए काम करता है। पैसा एक बहुत महत्वपूर्ण चीज़ होती है , अच्छे लोगो को अपने साथ जोड़ने के लिए। किन्तु अगर आप उन्हें एक टीम का हिस्सा नही बना पाते तो दुनिया के सबसे अच्छे एम्प्लोए भी आपको सफल नही बना पाएंगे।
भारत ने जब 20-20 वर्ल्ड कप 2007 में जीता तब कोई भी सोच नही सकता था कि भारत विश्व विजेता बन सकता है। उनके पास कोई स्टार प्लेयर नही था और न ही ज्यादा अनुभव। कप्तान धोनी को भी खास अनुभव नही था। फिर भी वो जीत गए। उनकी जीत का कारण था उनका टीम वर्क। उस टीम के हर खिलाड़ी को पता था कि उसको क्या करना है। वहाँ न कोई सीनियर था और न कोई जूनियर। हर कोई टीम का एक हिस्सा था। यही कम्पनियो के कामकाज में होता है।
कहने को उनके पास एक बहुत बड़ा स्टाफ होता है किन्तु ज्यादातर कम्पनियो को पता ही नही होता कि अपने एम्प्लोए से क्या काम लेना है। किस एम्प्लोए को क्या काम देना है। किस की क्या पोजीशन रहेगी। जब सभी को पता हो कि उसे उसके करे का पूरा क्रेडिट मिलेगा तो वह पूरी निष्ठा और लगन से काम करेगा।
सचिन की तुलना दुनिया के महान खिलाड़ियों में है किन्तु वो कभी भारत को विश्व कप नही दिला पाये। इसी तरह ब्रान लारा का उदहारण भी हमारे पास है। कोई भी टीम बिना अपने प्लेयर्स के नही जीत सकती। एक या दो मैच हो सकते है कि एक प्लेयर जीता दे लेकिन विश्व कप जीतने के लिए आपकी पूरी टीम अवल दर्जे की होनी चाहिए। सभी को अपनी रेस्पोंसिब्लिटी का पता हो। उसका क्या रोल है उसकी टीम में उसको पता हो। सबसे महत्वपूर्ण है एक टीम को एक दूसरे पर विश्वास होना है। और सबसे ज्यादा अपने कप्तान पर।
एक एम्प्लोए अपने समय का पूरा हिस्सा आपके लिए दे देता है। ये आप पर निर्भर करता है कि आप उसके समय का सद्पयोग करते है या व्यर्थ में बर्बाद कर देते है। एक कप्तान कितना भी अच्छा क्यों न खेलना जानता हो। उसे हमेशा अपने खिलाड़ियों को खेलने का मौका देना चाहिए ताकि उनमे आपके प्रति विश्वास और सम्मान बढ़े। टीम का जीतना खिलाड़ियों की काबलियत से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि वो एक टीम की तरह कैसे खेल पाते है।
एक कंपनी का स्टाफ उसकी टीम की तरह होता है। जहाँ कुछ महत्वपूर्ण खिलाडी होते है और कुछ पार्ट टाइमर। कुछ के कंधो पर कंपनी की नीव टिकी होती है और नौजवान अपनी काबलियत और मेहनत से कंपनी को सफल बनाने को आमदा होते है। टीम हमेशा अनुभव और जोश का मिश्रण होती है। सबका अपना रोल होता है उसकी टीम में। न कोई बड़ा और न कोई छोटा। जब भी किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने की बात आती है तब उस प्रोजेक्ट के दौरान न कोई सीनियर होता है और न कोई जूनियर। सीनियर और जूनियर का खेल केवल प्रैक्टिस के दौरान होता है जहाँ जूनियर अपने सीनियर से बहुत कुछ सीख सकता है। मैच के दौरान केवल खेलना होता है और जीतना।
क्या पता कोई जूनियर ऐसा आईडिया या सुझाव दे दे जिसके बारे में कभी किसी ने सोचा भी न हो। कंपनी का सफल होना या न होना पैसे या मैनेजमेंट पर निर्भर करता अपितु उसकी टीम पर ज्यादा निर्भर करता है और सबसे ज्यादा टीम के कप्तान पर।
धन्यवाद।
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