बहस का कोई अंत नही होता और न ही कभी किसी नतीजे पर पहुंचती है। उस बहस का भी कोई नतीजा नही निकला। मगर असल में देखा जाये तो फार्मा कंपनी में परचेस और सेल दोनों ही हैमियत रखते है। जहा कंपनी को ग्रोथ के लिए सेल की जरूरत होती है वही उसे बनाये रखने के लिए परचेस की भी बहुत हैमियत होती है। दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। स्टार्ट अप में आपकी सेल कम होती है पर परचेस आप अच्छी संख्या में खरीदते है। होता क्या है जब मार्किट में प्रोडक्ट बेचने निकलते है तो शुरुआत में कम सेल की वजह से हमे कभी भी परचेस की हैमियत समझ में नही आती। जैसे ही सेल बढ़ती है सबसे बड़ी जो प्रॉब्लम आती है वो है माल की कमी की। तब जरूरत महसूस होती बढ़िया खरीद डिपार्टमेंट की।
जितना हम आगे बढ़ते जाते है हमने महसूस होता रहता है कि हम कमी कहा कर रहे है। हर चीज़ बढ़िया , मार्किट रिलेशनशिप बढ़िया , मार्केटिंग बढ़िया , प्रमोशनल इनपुट अच्छे , स्टाफ अच्छा। फिर भी हम सेल क्यों नही बढ़ा पाते। इसका सबसे बड़ा कारण है हम समय से माल सप्लाई नहीं पाते। फार्मा में जो भी हम सेल करते है वो डॉक्टर के पैन से होती है। और डॉक्टर्स के पास इतने ज्यादा संख्या में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव आते है कि अगर एक बार कोई प्रोडक्ट उसके पैन से उतर गया तो दुबारा उसे लिखवाने के लिए जी जान लगा देना पड़ेगा।
हम अक्सर एक्सपायरी के डर से ज्यादा परचेस करने से डरते है किन्तु एक्सपायरी उतना नुकसान नही करती जितना कि प्रोडक्ट्स की कमी कर देती है। प्रोडक्ट्स का एक्सपायर होना एक सामान्य बात है। कितनी भी कोशिस कर ले एक्सपायरी तो हो ही जाती है। सेल और मार्केटिंग को चाहे कितना बढ़ा लो पर जब तक हमारी परचेस मजबूत नही होगी हम आगे नही बढ़ सकते। इसी वजह से कंपनिया स्थापित तो हो जाती है। अच्छी तरह मुनाफे में भी आ जाती है लेकिन कभी आगे नही बढ़ पाती।
सफल कंपनिया एक लेवल के बाद एक मजबूत परचेस डिपार्टमेंट बना देते है। उनकी सारी आवश्यकताएं उनका वह डिपार्टमेंट पूरी कर देता है। कंपनी को मुनाफे में लाना और अपनी जीविका का निर्वाह करना एक बात है तथा उसे उस मुकाम पर ले जाना जहा कोई आपको कॉम्पिटिशन न दे पाये दूसरी बात है। आज हम जिस दौर से गुजर रहे है वह सेवा (सर्विस) प्रधान दौर है। इस दौर में जो जितनी अच्छी सर्विस देता है वो उतनी जल्दी और उतना ज्यादा सफल होता है। फार्मा सेक्टर में सर्विस का मतलब होता है बिना टूटे माल की सप्लाई और बढ़िया फॉलो अप।
हम परचेस को सेल से कम नही आंक सकते। सेल अगर शरीर में खून की तरह काम करता है तो परचेस शरीर के लिए भोजन है। बिना भोजन के शरीर ब्लड को पैदा नही कर सकता।
जब मै अपनी फार्मा डिग्री के बाद इंडस्ट्री में आया था तब मुझे लगता था कि सेल पर ही सब निर्भर करता है। धीरे धीरे समझ में आने लगा कि कंपनी केवल सेल का खेल नही है कि माल बेचा और कंपनी चल पड़ी। कंपनी हर डिपार्टमेंट का एक अनुखा गठजोड़ है जो आजाद और अलग होकर भी एक दूसरे पर निर्भर है। कंपनी चाहे छोटी हो या बड़ी काम तो एक ही तरह होता है। सबकी सेल उनकी परचेस पर ही निर्भर करती है।
स्थापित होना आसान हो सकता है फार्मा इंडस्ट्री में। लेकिन आगे बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है कि हम खुद को कैसे संतुलित कर सकते है। कैसे सभी चीज़ो में समंजस्य बिठा सकते है। शुरुआत में कोई भी कंपनी ज्यादा स्टाफ नही रख सकती इसीलिए कम बन्दों के साथ ही ज्यादा से ज्यादा डिपार्टमेंट को सम्भालना पड़ता है। मैने भी एक छोटी कंपनी के साथ काम किया है अपने करियर के ज्यादातर वक़्त। वहां हर डिपार्टमेंट में एक्सपोज़र हुआ है। इसलिए काफी हद तक उनकी प्रोब्लेम्स को समझता हूँ।
धन्यवाद।
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