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गत दिवस जो न्यूज़ फार्मा में काफी चर्चा में थी, वो थी केश किंग (kesh king ) ब्रांड का 1651 करोड़ रुपये में इमामी के पास बिक जाना। केश किंग एस बी एस बायोटेक का ब्रांड था जोकि अम्बाला बेस कंपनी है। यह डील इस कारण भी ज्यादा चर्चा में रही कि इस डील का वैल्यूएशन केश किंग की सेल्स का 5 गुणा है। केश किंग हेयर प्रॉब्लम से संबंधित ब्रांड है जोकि आयल , शैम्पू और कैप्सूल में उपलब्ध है।
देखने में हो सकता है कि ये एक सामान्य सी बात लगे किन्तु केश किंग एक मात्र ऐसा ब्रांड था जिसका सीधा असर फ्रेंचाइजी कम्पनियो पर पड़ा था। एक छोटी कंपनी से शुरू होकर 1651 करोड़ तक का सफर बहुत कुछ कह जाता है और बहुत कुछ सीखा देता है। जिस साल केश किंग ने 8 करोड़ तेल बेचे थे उस वक़्त भी ये काफी चर्चा का विषय रहा था।
ऐसा नही है कि केश किंग का बिक जाना कोई नयी चीज़ है इससे पहले भी ब्रांड्स का बिकना या कम्पनियो का विलय हो जाना होता रहा है। साल 2010 में रेकिट बेनकाइज़र ने भी पारस फार्मा को 3260 करोड़ में ख़रीदा था। हाल ही सन फार्मा फार्मा और रैनबैक्सी के बीच हुए विलय को काफी चर्चा मिली थी। किन्तु इन डील्स का फार्मा फ्रेंचाइजी कम्पनियो पर कोई सीधा असर नहीं पड़ा था।
केश किंग को सभी छोटी कंपनिया अपने से जुड़ा सा महसूस करती थी। इसका एक कारण तो ये हो सकता है कि इस ब्रांड को मिली सफलता किसी छोटी सी कंपनी को मिली बहुत बहुत सफलता थी। केश किंग ने फ्रेंचाइजी कंपनियों को एक नया रास्ता दिखा दिया है। वैस्टर्न देशो में ब्रांड के सफलता प्राप्त होते ही बिक जाना एक आम है। इस डील के बाद भारत में भी इस तरह की और डील देखि जा सकती है। पहले कम्पनियो मात्र पैसे कमाने या खुद को ओर विस्तार प्रधान करने में ही विस्वास रखती थी लेकिन अब कंपनिया खुद को ब्रांड बनाने या किसी प्रोडक्ट्स को ब्रांड की तरह प्रमोट करने में भी विस्वास रखेगी।
इससे उनका मार्केटिंग बजट जरूर बढ़ सकता है किन्तु खुद प्रमोट करने से उनमे MNC कम्पनियो के साथ मुकाबला करने में मदद मिलेगी। MNC कम्पनियो केवल विज्ञापन और ब्रांड बिल्डिंग की वजह से ज्यादा सफल हो जाती है। अगर भारतीय कम्पनिया भी अपने दायरे से बाहर निकल कर अपने आप को एफ एम सी जी प्रोडक्ट्स में भी केंद्रित करे तो ये उनके भविस्य के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
सभी फ्रेंचाइजी कंपनिया एक चीज़ तो अवस्य महसूस कर रही है और वह है कि मार्किट अब पहले से काफी बदल गयी है। हर साल उन्हें लगता है कि उनका भविष्य फार्मास्यूटिकल मार्किट में अब ज्यादा नही है। इस वजह से भी केश किंग की डील का फार्मा फ्रेंचाइजी मार्किट पर असर देखने को मिलेगा। इसके साथ ही छोटी कम्पनियो को ब्रांड प्रमोशन के बारे में सीखने की भी जरूरत है। ऐसा नही है कि उनके पास बजट में पैसा नही है फर्क इतना है कि वो कभी इस बारे में सोचते नही है। उन्हें इस बात की जरूरत महसूस नही होती।
जैसे जैसे मार्किट बदल रही है ब्रांड प्रमोशन की आवश्यकता भी बढ़ रही है। इस बिक्री के बाद छोटी कम्पनियो की भी ब्रांड में दिलचस्पी बढ़ गयी है। अब कुछ लोग प्रोडक्ट्स को इसीलिये भी प्रोमोट करेंगे ताकि बड़ी कम्पनियो से अच्छी डील मिल सके। जैसेकि अमेरिका में बहुत लोग इसी उदेश्ये से काम शुरू करते है। वो इसी उम्मीद में ब्रांड प्रमोट करते है कि कोई बड़ी कंपनी सफल होने के बाद उसकी अपनी सेल्स के कही गुना ज्यादा कीमत से खरीद ले। शायद भारत में भी यही देखने को मिले।
इस डील के बाद सुनने में आया है की एक बड़ी कंपनी भी केरल बेस आयुर्वेदिक कंपनी और उसके ब्रांड्स के अधिकरण के बारे में सोच रही है। जिसकी डील अनुमानन 500 करोड़ के आस पास हो सकती है। आने वाले समय में और भी कुछ छोटी मछलियाँ बड़ी मछलियो द्वारा निगल ली जानी है। खरीदना -बेचना तो मार्किट में चलता रहता है पर क्या ये मार्किट में असंतुलन पैदा नही करता।
चाहे जो भी हो अब फार्मा फ्रेंचाइजी मार्किट को भी बदलाव की जरूरत है जो हम केश किंग से सीख सकते है।
धन्यवाद।